रविवार, 8 अगस्त 2010

जो चाहे कह लो

कुछ लिखा है अपने लिए और उन सबके लिए जिनकी अपनी मौलिक सोच होती है , भाव होते हैं , शब्द होते है पर पता नहीं क्या???  मगर कुछ होता है जो रोकता है अभिव्यक्ति से ............उनको एक भेंट ......


खुद चुप के जीना है तो जिए, 
हमें क्यूँ रखते है, 
अपने हुनर से जुदा,
आपके खयालो से, 
कविताओ से ,ग़ज़लों से,
खूबसूरत नज्मों से ,
शायरी से मिलकर, 
लगता है कोई और भी है ,
जो सोचता है मेरी तरह,
करता है मेरी ही तरह जज्बात बयां,   
मानिए न मेरी बात दिल से कहती हू ...
"है जो आप में उसे रौशनी दीजिये 
 हुनर को पर्दा नहीं नज़रें चाहिए" 

3 टिप्‍पणियां:

  1. "Hai Jo aap mein usse Roshni deejiye
    Hunar ko Parda nahi Nazarein Chahiye"
    ye wahi lines hai jo tumne mere saath anchoring mein boli thhi. Dekho mujhe abhi bhi yaad hai.

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  2. hey somesh kaise ho ....after a long time about 6-7 years ..kaha thhe tum itne saal..nice 2 see u here...mail me ur id at noopur.almora@gmail.com n howz sakshi di n preeta??

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